
उमा रुप अऩूप अवऩि, आवडां लखि आदि;
बरण चारण जनम बाढि,आप कीरति अऩादि;
तो अनऩादि जी अनऩादि ; अंबा अवतऱी अनऩादि ॥१॥
धऩ्य जैसलमेर धरती, गांव चाऴक़ गण्य;
साहेबां लख तणॊ सूरज मांमडां कवि मन्य;
तॊ धऩ्य जी हॉ धऩ्य, धाऱी देह उण धर धऩ्य ॥२॥
शक अठ्यासी आठसैं सुदि, चैत मास सुचारु;
नमुं शुम दिऩ तिथि ऩौमि,वरतियौ शऩिवार;
तॉ अवतार जी अवतार, आवड ईश्वरी अवतार ॥३॥
लांगलां पर आदि लॆकर, सगत बहऩां सात;
लॊक़ परथम जनम लीन्यॊ, मांमडां घर मात;
तो विख्यात जी विख्यात,वसुधा कीरति विख्यात॥४॥
तैमडो खळ मार त्रिपुरा, जीत असुरां जंग;
थिरु परबत मांहि थाप्यो, मात दुरगा मंढ;
तो नवखंड जी नवखंड,नामी आसती नवखंड॥५॥
सिंध जातां आप शगति, हाकडो महराण;
चळू हेकण घाल चंडी, षोशियो सुर त्राण;
तो अप्रमाण जी अप्रमाण,पी ग्यां आप जळ अप्रमाण ॥६॥
पीवणें अहि भ्रात पीधो, करी अद्भू्त कत्थ;
अमरलोंकांसुं आंण अमरत, रोडियो रवि रत्थ;
तो समरत्थ जी समरत्थ, सहोदर जीवाड्यो समरत्थ ॥७॥
आवडां रो सुजस अवनि, विलंब है विस्तार;
पात मुणिया कथा परचा सहज जुगत्यां सार;
तो साधार जी साधार, सगति सेवगां साधार॥८॥
2 comments:
ati sundar......... Lage raho Narpatbhai......... keep it up..........
Jai Mataji ri hukum........bahut badhiya. Ishya aur duha likho in blog maate
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