Wednesday, July 23, 2008

देवी रा दूहा

चाळरायरे जाळरी, झाली सेवक़ झंव;
दिन वळियो टळियो विघन, आंगण फळियो अंब॥१॥

आवड ध्यायां विदगां,आवड कर आपांण;
कावड नें सावड करण,नावड विरद निवाण ॥२॥

सोह बखांणूं चारणी, मुरधर देश विचाळ;
सूरज किणी न ढांकियो, हेकण आवड टाळ॥३॥


आवड आवड उचरतां ,तावड लगे न ताव ।
छतराऴी छाया करै, मामडियाऴी माव

करनांदे कई वार, मन मांहि कीनो मतो,
(पण) हुकुम विनां हिक वार,देसांणो दीठो नही ॥४॥

आई किजै उंदरा,मेहाई गढ़ मांय ।
कणक चुगां कोठाररी,पड्यो रहुं पछडाय ॥५॥

Tuesday, July 22, 2008

जगदंबा रा प्रवाडा(आवडजी महाराज रो)-नरुजी कविया रो कहयो


उमा रुप अऩूप अवऩि, आवडां लखि आदि;

बरण चारण जनम बाढि,आप कीरति अऩादि;

तो अनऩादि जी अनऩादि ; अंबा अवतऱी अनऩादि ॥१॥

धऩ्य जैसलमेर धरती, गांव चाऴक़ गण्य;

साहेबां लख तणॊ सूरज मांमडां कवि मन्य;

तॊ धऩ्य जी हॉ धऩ्य, धाऱी देह उण धर धऩ्य ॥२॥

शक अठ्यासी आठसैं सुदि, चैत मास सुचारु;

नमुं शुम दिऩ तिथि ऩौमि,वरतियौ शऩिवार;

तॉ अवतार जी अवतार, आवड ईश्वरी अवतार ॥३॥

लांगलां पर आदि लॆकर, सगत बहऩां सात;

लॊक़ परथम जनम लीन्यॊ, मांमडां घर मात;

तो विख्यात जी विख्यात,वसुधा कीरति विख्यात॥४॥

तैमडो खळ मार त्रिपुरा, जीत असुरां जंग;

थिरु परबत मांहि थाप्यो, मात दुरगा मंढ;

तो नवखंड जी नवखंड,नामी आसती नवखंड॥५॥

सिंध जातां आप शगति, हाकडो महराण;

चळू हेकण घाल चंडी, षोशियो सुर त्राण;

तो अप्रमाण जी अप्रमाण,पी ग्यां आप जळ अप्रमाण ॥६॥

पीवणें अहि भ्रात पीधो, करी अद्भू्त कत्थ;

अमरलोंकांसुं आंण अमरत, रोडियो रवि रत्थ;

तो समरत्थ जी समरत्थ, सहोदर जीवाड्यो समरत्थ ॥७॥

आवडां रो सुजस अवनि, विलंब है विस्तार;
पात मुणिया कथा परचा सहज जुगत्यां सार;

तो साधार जी साधार, सगति सेवगां साधार॥८॥